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श्लोक : 39 / 43

भगवान श्री कृष्ण
भगवान श्री कृष्ण
कुंठी के पुत्र, यह ज्ञानी लोगों का नित्य शत्रु है; ज्ञानी लोगों का ज्ञान उस एकाग्रता से ढका हुआ है; इसे आग से भी संतोष प्राप्त करना कठिन है।
राशी कन्या
नक्षत्र हस्त
🟣 ग्रह शनि
⚕️ जीवन के क्षेत्र करियर/व्यवसाय, वित्त, अनुशासन/आदतें
कन्या राशि में स्थित अस्तम नक्षत्र और शनि ग्रह, इस श्लोक के गहरे अर्थ को प्रकट करते हैं। कन्या राशि सामान्यतः विवेक और संयम को दर्शाती है। अस्तम नक्षत्र, किसी की क्षमताओं और कार्यों को सुधारने में मदद करता है। लेकिन, शनि ग्रह, कठिन परिश्रम और आत्म-नियंत्रण पर जोर देता है। व्यवसाय और वित्तीय क्षेत्रों में, इच्छा और लालच हमें गलत रास्ते पर ले जा सकते हैं। शनि ग्रह, संयम से कार्य करने के द्वारा, वित्तीय स्थिरता प्राप्त करने में मदद करता है। व्यवसाय में, ईमानदारी से कार्य करना महत्वपूर्ण है। नैतिकता और आदतों में, शनि ग्रह, नियंत्रण और जिम्मेदारी पर जोर देता है। इच्छाओं को नियंत्रित करके और संयम से कार्य करके, हम अपने जीवन में वित्तीय और व्यवसायिक प्रगति प्राप्त कर सकते हैं। इससे, हमारे जीवन में वित्तीय स्थिरता और मानसिक शांति प्राप्त हो सकती है।
भगवद गीता की व्याख्याएँ AI द्वारा जनित हैं; उनमें त्रुटियाँ हो सकती हैं।