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श्लोक : 73 / 78

अर्जुन
अर्जुन
असुदा, तेरे दयालुता से, मेरी माया छिप गई, और मैंने अपनी स्मृति फिर से प्राप्त की; मैं दृढ़ता से खड़ा हूँ; मेरे संदेह अब समाप्त हो गए हैं; और, मैं निश्चित रूप से तेरी शिक्षाओं का पालन करूंगा।
राशी मकर
नक्षत्र उत्तराषाढ़ा
🟣 ग्रह शनि
⚕️ जीवन के क्षेत्र करियर/व्यवसाय, परिवार, स्वास्थ्य
इस भगवद गीता श्लोक में अर्जुन कृष्ण के आशीर्वाद से अपने मन में जो माया थी, उसे हटाकर स्पष्ट रूप से सोचने लगता है। इसे ज्योतिषीय दृष्टिकोण से देखने पर, मकर राशि और उत्तराद्रा नक्षत्र शनिग्रह द्वारा शासित होते हैं। शनिग्रह की प्रकृति आत्मविश्वास, धैर्य और कठिन परिश्रम को दर्शाती है। व्यवसाय जीवन में, शनिग्रह हमारी कोशिशों को स्थिरता के साथ आगे बढ़ाने में मदद करता है। परिवार की भलाई में, शनिग्रह जिम्मेदारियों को समझाता है और रिश्तों को मजबूत करता है। स्वास्थ्य में, शनिग्रह सावधानी से कार्य करने की आवश्यकता को दर्शाता है। इस प्रकार, गुरु की सलाह से स्पष्टता प्राप्त करके, हम अपने व्यवसाय, परिवार और स्वास्थ्य जीवन में आगे बढ़ सकते हैं। गुरु की सलाह का पालन करते हुए, हमारे कार्यों में दृढ़ता से बने रहना आवश्यक है। इससे, हमारे जीवन में विश्वास और स्पष्टता प्राप्त होती है। शनिग्रह हमें चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करता है, जिससे हम अपने जीवन के क्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
भगवद गीता की व्याख्याएँ AI द्वारा जनित हैं; उनमें त्रुटियाँ हो सकती हैं।