मेरे उस स्थान को सूर्य, चंद्र या अग्नि भी प्रकाशित नहीं कर सकते; मेरे उच्चतम निवास में आने वाला कभी लौटता नहीं।
श्लोक : 6 / 20
भगवान श्री कृष्ण
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राशी
मकर
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नक्षत्र
श्रवण
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ग्रह
शनि
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जीवन के क्षेत्र
करियर/व्यवसाय, परिवार, स्वास्थ्य
इस भगवद गीता श्लोक में भगवान कृष्ण द्वारा वर्णित परमात्मा की स्थिति, मकर राशि और तिरुवोणम नक्षत्र में जन्मे लोगों के लिए बहुत उपयुक्त है। शनि ग्रह इनकी जिंदगी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शनि ग्रह के आशीर्वाद से, ये व्यवसायिक जीवन में धैर्य और संयम से कार्य करेंगे। व्यवसाय में उन्नति के अवसर अधिक होंगे। परिवार में शांति और खुशी बनी रहेगी, स्वास्थ्य में सुधार होगा। शनि ग्रह के प्रभाव के कारण, ये हमेशा अपनी जिम्मेदारियों को समझकर कार्य करेंगे। स्वास्थ्य पर ध्यान देकर, संतुलित खान-पान की आदतों का पालन करना चाहिए। पारिवारिक संबंधों और जिम्मेदारियों को अच्छी तरह से प्रबंधित करने के लिए मानसिक स्थिति स्थिर रहेगी। ये जीवन में स्थायी खुशी प्राप्त करने के लिए भगवान कृष्ण की शिक्षाओं का पालन करते हुए आध्यात्मिक विकास की ओर बढ़ना चाहिए। इस प्रकार, भगवान कृष्ण के परमात्मा स्थान को प्राप्त करने का मार्ग यह श्लोक दिखाता है।
इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण अपने दिव्य स्थान का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं, 'मेरा स्थान किसी भी प्रकाश से प्रकाशित नहीं हो सकता, वह हमेशा प्रकाशमान रहेगा।' इस स्थान पर आने वाली आत्माएँ पुनर्जन्म लेकर इस संसार में नहीं आतीं। यह परमात्मा को प्राप्त करने की स्थिति को दर्शाता है। भगवान का कहना है कि यह छाया चित्र संसार के सभी नित्य सुखों से ऊँचा है। भक्त इस परमात्मा की स्थिति को प्राप्त करने की आशा रखते हैं।
भगवान कृष्ण अपने परमात्मा स्वरूप को स्पष्ट करते हैं। वे जिस स्थिति का वर्णन करते हैं, वह किसी अन्य प्रकाश की आवश्यकता नहीं है। यह आध्यात्मिक प्रकाश की स्थिति है, जो अज्ञान के अंधकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश देती है। यह स्थिति वेदांत के अनुसार मोक्ष को दर्शाती है। जब आत्मा अपनी सच्ची स्थिति को प्राप्त करती है, तो वह इस संसार में वापस नहीं आती। यह शाश्वत शांति और आनंद की स्थिति है। परमात्मा के साथ एकीकृत होना आत्मा का अंतिम लक्ष्य है, ऐसा वेदांत कहता है। यह श्लोक एक साथ आत्मा के सुख और परमात्मा की पूर्णता को स्पष्ट करता है।
यह श्लोक हमें याद दिलाता है कि जीवन की हलचल में हमें क्षणिक सुखों से परे स्थायी सुख की खोज करनी चाहिए। पारिवारिक जीवन में शांति और खुशी प्राप्त करने के लिए हमें स्वयं का विश्लेषण करना चाहिए और देखना चाहिए कि क्या वास्तव में हमें खुश करता है। हमें यह समझना चाहिए कि व्यवसायिक जीवन में हमारा धन या पद स्थायी खुशी नहीं देता। ऊर्जा और स्वास्थ्य को लक्ष्य बनाकर अच्छे खान-पान की आदतों का पालन करना चाहिए। माता-पिता की जिम्मेदारी को समझकर उनके कल्याण को प्राथमिकता देनी चाहिए। ऋण और EMI के दबावों को संभालने के लिए ऊर्जा और विश्वास को बढ़ाना चाहिए। सामाजिक मीडिया हमें वास्तविक खुशी नहीं देता, इसे समझकर अपने समय का उपयोग उपयोगी गतिविधियों में लगाना चाहिए। दीर्घकालिक सोच वाली जीवन शैली हमें गहरी खुशी प्रदान करती है। यह श्लोक हमें आध्यात्मिक विकास के महत्व को समझाता है और स्थायी खुशी प्राप्त करने का मार्ग दिखाता है।
भगवद गीता की व्याख्याएँ AI द्वारा जनित हैं; उनमें त्रुटियाँ हो सकती हैं।