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श्लोक : 35 / 42

भगवान श्री कृष्ण
भगवान श्री कृष्ण
और, साम वेद के सभी गीतों में, मैं ब्रहच्छामम्; वेदों के सभी पवित्र ग्रंथों में, मैं गायत्री; सभी महीनों में, मैं मार्गशीर्ष; सभी ऋतुओं में, मैं वसंत काल हूँ।
राशी मकर
नक्षत्र उत्तराषाढ़ा
🟣 ग्रह शनि
⚕️ जीवन के क्षेत्र करियर/व्यवसाय, वित्त, परिवार
इस भगवद गीता के श्लोक में, भगवान कृष्ण अपनी दिव्य गुणों का वर्णन करते हैं। इसे ज्योतिषीय दृष्टिकोण से देखने पर, मकर राशि में होने वालों के लिए उत्तराद्र नक्षत्र और शनि ग्रह महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मकर राशि शनि ग्रह द्वारा शासित होती है, जो जिम्मेदारी और नियंत्रण को दर्शाता है। उत्तराद्र नक्षत्र, मकर राशि में होने वालों को आत्मविश्वास और धैर्य प्रदान करता है। व्यवसाय और वित्त के क्षेत्रों में मकर राशि और उत्तराद्र नक्षत्र वाले लोगों को शनि ग्रह के समर्थन से प्रगति देखने को मिल सकती है। पारिवारिक जीवन में, जिम्मेदारी से कार्य करने से सामंजस्य स्थापित होता है। व्यवसाय में प्रगति के लिए, दिव्य गायत्री मंत्र का प्रतिदिन जाप करना मन को शांति और वित्तीय स्थिति में सुधार करने में मदद करता है। मार्गशीर्ष महीने में आध्यात्मिक साधनाएँ पारिवारिक कल्याण के लिए सहायक होंगी। वसंत काल की तरह, मानसिक ताजगी के साथ कार्य करने से व्यवसाय में वृद्धि हो सकती है। इससे, मकर राशि में होने वाले लोग अपने जीवन में दिव्य गुणों को समझकर, मानसिक शांति और संतोष प्राप्त कर सकते हैं।
भगवद गीता की व्याख्याएँ AI द्वारा जनित हैं; उनमें त्रुटियाँ हो सकती हैं।